यातना (टॉर्चर) मानव गरिमा का सबसे घिनौना उल्लंघन है। यह किसी व्यक्ति की मूलभूत स्वतंत्रता छीन लेती है, असहनीय शारीरिक और मानसिक पीड़ा देती है, और जीवनभर न मिटने वाले ज़ख्म छोड़ जाती है। “कोई भी व्यक्ति किसी भी स्थिति में यातना या क्रूर, अमानवीय तथा अपमानजनक व्यवहार या दंड का शिकार नहीं होगा” — यह सिद्धांत मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (Universal Declaration of Human Rights) का आधार है। लेकिन दुःख की बात है कि आज भी दुनिया के कई हिस्सों में लोग चुपचाप इस अमानवीयता का शिकार हो रहे हैं।
यातना किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है। यह न केवल मानव जीवन और गरिमा को ठेस पहुँचाती है, बल्कि न्याय व्यवस्था को कमजोर करती है और समाज की नैतिक नींव को भी हिला देती है। चाहे इसे किसी सरकार, आतंकवादी संगठन या किसी व्यक्ति द्वारा किया जाए — यह कायरता और अन्याय का प्रतीक है। यातना न केवल पीड़ित के शरीर और मन को तोड़ देती है, बल्कि नागरिकों और उन संस्थाओं के बीच विश्वास भी समाप्त कर देती है, जो उनकी सुरक्षा के लिए बनाई गई हैं।
यह समझना भी ज़रूरी है कि यातना केवल शारीरिक नहीं होती। मानसिक, भावनात्मक या सामाजिक यातनाएँ भी उतनी ही घातक होती हैं। अकेलेपन में रखना, अपमानित करना, गालियाँ देना, परिवार को धमकाना, या ज़रूरी चीजों से वंचित करना — ये सभी अमानवीय व्यवहार के अंतर्गत आते हैं। अक्सर राष्ट्रीय सुरक्षा, कानून व्यवस्था या धार्मिक-राजनीतिक नियंत्रण के नाम पर ऐसी क्रूरता की जाती है। लेकिन कोई भी कारण, चाहे वह कितना भी बड़ा क्यों न लगे, यातना को जायज़ नहीं ठहरा सकता।
यातना से मुक्त रहने का अधिकार एक परम अधिकार है। इसे किसी भी परिस्थिति — युद्ध, आतंरिक अशांति या आपातकाल — में रोका या निलंबित नहीं किया जा सकता। संयुक्त राष्ट्र द्वारा पारित अमानवीय यातना विरोधी संधि (United Nations Convention Against Torture - UNCAT) जैसी अंतरराष्ट्रीय संधियाँ इस सिद्धांत की रक्षा करती हैं, और सभी देशों को अपने यहां यातना रोकने व दोषियों को सजा देने का दायित्व सौंपती हैं।
हमें यह भी जानना चाहिए कि यातना का असर केवल उस व्यक्ति तक सीमित नहीं रहता। यह पूरे परिवार, समाज और पीढ़ियों तक को प्रभावित करता है। पीड़ित जीवनभर मानसिक तनाव, अवसाद, डर और सामाजिक उपेक्षा से जूझते रहते हैं। इसलिए हम सभी का यह नैतिक और सामाजिक कर्तव्य है कि इस अमानवीय प्रथा के खिलाफ आवाज उठाएँ, पीड़ितों को न्याय दिलाने में मदद करें और समाज में मानव अधिकारों के महत्व को जागरूक करें।
अंत में, यातना और अमानवीय व्यवहार रहित दुनिया कोई कल्पना नहीं, बल्कि एक नैतिक आवश्यकता है। यह हमारी करुणा, न्याय और मानवता में आस्था के साथ शुरू होती है। आइए हम सब मिलकर यह संकल्प लें — कि हम किसी भी यातना या क्रूर व्यवहार के खिलाफ एकजुट होकर खड़े होंगे, और एक ऐसा समाज बनाएँगे जहाँ हर व्यक्ति सम्मान और डर मुक्त जीवन जी सके।
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